मांडणों के विषय में पहल करते समय हमे अवगत होता है कि प्रागैतिहासिक युग के बाद आर्यों के आनेपर ही हमारी सभ्यता व संस्कृति ने एक नया मोड़ लिया हैl आर्यों के आगमन के पश्चात ही भारत में मांडणों मण्डल मांडने का आरम्भ हुआ हैl आर्य वैदिक परम्परा में विश्वास रखा करते थेl वे अग्नि, सूर्य, वरुण, मित्र जैसे देवी-देवताओं, नवग्रहों, प्रकृति की शक्तिओं की उपासना करने के लिए पुजा, यज्ञ, होम-हवन आदि कर्मकाण्ड किया करते थेl आर्यों के उपरान्त ब्राह्मण वर्ग व्दारा मांडणों का प्रचलन किया गया है।
यजुर्वेद में कर्मकाण्ड निमित्त अनेक मण्डलों की रचना की गई है। यथा-सर्वतो भद्र मण्डल, चतुर्ल्लिगतों भ्रपमण्डल, अष्टलिंगतों भद्र मण्डल, द्वादशल्लिंगतों भद्र मण्डल आदि। यज्ञ के समय मांडणों बनाये जाते थे। पहले वे केवल जमीन पर ही बनायें जाते थे। मांडणा की इंकाईयों को भरने के लिए एकदल (गेहूँ, चावल), व्दिदल (उडद दाल, मुंग दाल) जैसे धान्यों का प्रयोग किया जाता था। अन्य मांडणा मण्डल रचनाओं में कुंकुम, हल्दी, सिंदूर, गोबर की राख, कोयले की काली पाउडर, चन्दन चूर्ण, फुल, तुलसी और आम के पेड़ के हरे पत्तों का प्रयोग भी किया जाता था।
वैदिक परम्परा में असुरी ताकदों से पुजा स्थानों- वेदी को सरंक्षित करने हेतू सर्वप्रथम वे वेदी- पुजा स्थानों की शुद्धी की जाती थीl जिस स्थान पर वेदी को, मांडणों को मांडना है उस स्थान पर पहले गो मूत्र छिड़का जाता था, पश्चात उस जगह की गोबर-मिट्टी से पोत कर शुद्धि की जाती थी। मांडणा मांडते समय विशिष्ट मंत्रोच्चारण किया जाता था। और विशिष्ट पूजा-पाठ के पश्चात विधिवत मांडणों का विसर्जन किया जाता था। प्राचीन काल में तथा वैदिक परम्परा में पृष्ठभूमि की सजावट को बड़ा महत्त्व था और धार्मिक कर्मकांण्डो के अवसरपर पृष्ठभूमि या हवन की वेदी को सजाया जाता थाl यज्ञकुण्डों को चित्रित तथा सुशोभित करने का वर्णन तथा चर्चा कई वेद-पुरानों, ग्रंथों और पुस्तकों में हैl वात्सायनकृत ‘कामसूत्र’ नामक पुस्तक में जिन चौसस्ट कलाओं का वर्णन किया हैl उन में, भूमि तथा भित्ति अलंकरण से जुडी चौथी कला ‘आलेख्यम्’ और नववीं कला ‘मणिभूमिकाकर्म’ का वर्णन हैl जो मांडणा विधा से जुड़ा हुआ हैl
मांडणों के विषय में अध्ययन करते समय हम एक क्रम पाते है कि पहले आर्यों ने, तत्पश्चात ब्राह्मण वर्ग अंत में वैश्यों व्दारा मांडणों का प्रचलन किया गया हैl वैश्यों ने इसे लोककला के रूप में निखारा है, वे देवी-देवताओं की कल्पना पर विश्वास रखते थे साथही धार्मिक पूजा-पाठ करते थेl इस वर्ग के पुरुष अधिकतर व्यापार, खेती-बाड़ी से जुड़े होते थे, और औरतें घरकाम के साथ साथ रखरखाव, कशीदाकारी, सांस्कृतिक गतिविधियाँ और साज-शृंगार में अधिक लगाव रखती थीl
हमारे देश में भित्ति तथा भूमि अलंकरण की परम्परा आदिम काल से चली आ रहीं हैl धार्मिक विश्वास व आस्थाओं के कारण मनुष्य इन्हे विविध रुपों व प्रक्रियां में प्रस्तुत करते आया हैl मांडणा यह भारत वर्ष की ही नहीं बल्कि विश्व कि एकमात्र ऐसी लोकविधा है। जिसे जनम-परण-मरण पर उकेरा जाता है।
समय के साथ साथ मांडणा विधा हमारे जीवन में एक लोक कला के रूप में घुल मिल गयी है और सदियों से वह तीज-त्यौहारों पर जमीन और भित्ति पर उकेरती आ रही हैl
(आगामी पुस्तक Mandanagraphy से साभार व अनुवादीत अंश)
मांडणों के विषय में अध्ययन करते समय हम एक क्रम पाते है कि पहले आर्यों ने, तत्पश्चात ब्राह्मण वर्ग अंत में वैश्यों व्दारा मांडणों का प्रचलन किया गया हैl वैश्यों ने इसे लोककला के रूप में निखारा है, वे देवी-देवताओं की कल्पना पर विश्वास रखते थे साथही धार्मिक पूजा-पाठ करते थेl इस वर्ग के पुरुष अधिकतर व्यापार, खेती-बाड़ी से जुड़े होते थे, और औरतें घरकाम के साथ साथ रखरखाव, कशीदाकारी, सांस्कृतिक गतिविधियाँ और साज-शृंगार में अधिक लगाव रखती थीl
हमारे देश में भित्ति तथा भूमि अलंकरण की परम्परा आदिम काल से चली आ रहीं हैl धार्मिक विश्वास व आस्थाओं के कारण मनुष्य इन्हे विविध रुपों व प्रक्रियां में प्रस्तुत करते आया हैl मांडणा यह भारत वर्ष की ही नहीं बल्कि विश्व कि एकमात्र ऐसी लोकविधा है। जिसे जनम-परण-मरण पर उकेरा जाता है।
समय के साथ साथ मांडणा विधा हमारे जीवन में एक लोक कला के रूप में घुल मिल गयी है और सदियों से वह तीज-त्यौहारों पर जमीन और भित्ति पर उकेरती आ रही हैl
(आगामी पुस्तक Mandanagraphy से साभार व अनुवादीत अंश)
Mandala and floor Mandana are almost similar, but it’s translated in different way!
The word ‘MANDALA’ (मण्डल, circle) is from the classical Indian language of Sanskrit. Mandala is a spiritual and ritual symbol of Hinduism, Jainism and Buddhism; representing the Universe. The basic form of most mandalas is a square containing with four gates and circles. A mandala is an integrated structure organized around a unifying center. Mandalas often exhibit radial balance. This term is of Sanskrit origin. It seems in the Rig Veda (ऋगवेद/ऋग्वेद) as the name of the sections of the work. It also represents wholeness, and can be seen as a model for the organizational structure of life itself; a cosmic diagram that reminds us of our relation to the infinite, the world that extends both beyond and within our bodies and minds. It is also known as a divine form of philosophy. In various spiritual traditions, mandalas may be employed for focusing attention of practitioners and adopts, as a spiritual guidance tool, for establishing a sacred space, and as an assist to meditation and trance induction. Commonly, mandala has a basic diagram, chart or geometric pattern that represents the cosmos metaphysically or symbolically; a miniature of the universe. Mandala is describing both material and non-material realities; the mandala appears in all aspects of life: the celestial circles we call earth, sun, and moon, as well as conceptual circles of friends, family, and community. A consciousness of the mandala may have the potential of transforming how we see ourselves, our planet, and possibly even our own life purpose. The philosophy and purpose behind the execution of Mandala and Mandana is almost similar, but its way of translation and execution are different.
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